नक्षत्र और उनके प्रभाव

ग्रहों और उनके स्वामी नक्षत्रों की तालिका

ग्रह (नक्षत्र स्वामी)नक्षत्र संख्यानक्षत्रों के नाम
केतु1, 10, 19अश्विनी, मघा, मूल
शुक्र2, 11, 20भरणी, पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा
सूर्य3, 12, 21कृत्तिका, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा
चंद्रमा4, 13, 22रोहिणी, हस्त, श्रवण
मंगल5, 14, 23मृगशिरा, चित्रा, धनिष्ठा
राहु6, 15, 24आर्द्रा, स्वाति, शतभिषा
गुरु (बृहस्पति)7, 16, 25पुनर्वसु, विशाखा, पूर्वाभाद्रपद
शनि8, 17, 26पुष्य, अनुराधा, उत्तराभाद्रपद
बुध9, 18, 27आश्लेषा, ज्येष्ठा, रेवती

एक नक्षत्र के चार पद होते हैं, इस तरह कुल 108 पद हुए । राशियाँ 12 होती हैं तो एक राशि में 9 पद आते हैं। इस सारणी से इसे समझ सकते हैं : –

राशि

राशि स्वामी

नक्षत्र

नक्षत्र स्वामी

नक्षत्र पद

1.मेष

मंगल

अश्विनी

केतु

1 से 4

भरणी

शुक्र

1 से 4

कृत्तिका

सूर्य

1

2.वृषभ

शुक्र

कृत्तिका

सूर्य

2 से 4

रोहिणी

चन्द्र

1 से 4

मृगशिरा

मंगल

1 से 2

3.मिथुन

बुध

मृगशिरा

मंगल

3 से 4

आर्द्रा

राहु

1 से 4

पुनर्वसु

गुरु

1 से 3

4.कर्क

चन्द्र

पुनर्वसु

गुरु

4

पुष्य

शनि

1 से 4

अश्लेषा

बुध

1 से 4

5.सिंह

सूर्य

मघा

केतु

1 से 4

पूर्व फाल्गुनी

शुक्र

1 से 4

उत्तर फाल्गुनी

सूर्य

1

6.कन्या

बुध

उत्तर फाल्गुनी

सूर्य

2 से 4

हस्त

चन्द्र

1 से 4

चित्रा

मंगल

1 से 2

7.तुला

शुक्र

चित्रा

मंगल

3 से 4

स्वाति

राहु

1 से 4

विशाखा

गुरु

1 से 3

8.वृश्चिक

मंगल

विशाखा

गुरु

4

ज्येष्ठ

शनि

1 से 4

अनुराधा

बुध

1 से 4

9.धनु

गुरु

मूल

केतु

1 से 4

पूर्व आषाढ़

शुक्र

1 से 4

उत्तर आषाढ़

सूर्य

1

10.मकर

शनि

उत्तर आषाढ़

सूर्य

2 से 4

श्रवण

चन्द्र

1 से 4

धनिष्ठा

मंगल

1 से 2

11.कुम्भ

शनि

धनिष्ठा

मंगल

3 से 4

सताभिषा

राहु

1 से 4

पूर्व भाद्रपद

गुरु

1 से 3

12.मीन

गुरु

पूर्व भाद्रपद

गुरु

4

उत्तर भाद्रपद

शनि

1 से 4

रेवती

बुध

1 से 4

नक्षत्र स्वामी ग्रहों का निर्धारण: वैदिक पद्धति और ऊर्जा प्रभाव

वैदिक ज्योतिष में 27 नक्षत्रों को नौ ग्रहों के बीच बांटा गया है। हर ग्रह को तीन नक्षत्रों का स्वामी माना गया है। यह निर्धारण सिर्फ गणितीय विभाजन नहीं है, बल्कि ग्रहों की ऊर्जा, प्रकृति और प्रभाव को ध्यान में रखकर किया गया है।

27 नक्षत्रों के गुण एवं विशेषताएँ

नक्षत्रमुख्य गुण (Characteristics)
अश्विनीतेज गति, नेतृत्व, चिकित्सा, ऊर्जा, नवीन शुरुआत
भरणीधैर्य, सहनशीलता, दृढ़ संकल्प, पुनर्जन्म, भोग-विलास
कृत्तिकासाहस, आक्रामकता, आत्म-शक्ति, संघर्ष, अग्नि तत्व
रोहिणीसृजनशीलता, सौंदर्य, प्रेम, प्रजनन क्षमता, समृद्धि
मृगशिराखोज, जिज्ञासा, चंचलता, रोमांच, यात्रा प्रेमी
आर्द्रारहस्य, अचानक परिवर्तन, संघर्ष, प्रबल इच्छा शक्ति
पुनर्वसुज्ञान, पुनर्जन्म, धैर्य, दयालुता, समृद्धि
पुष्यआध्यात्मिकता, शिक्षक, पोषण, परोपकार, दृढ़ता
आश्लेषाचतुराई, रहस्य, रणनीति, सम्मोहन शक्ति, तंत्र
मघागौरव, सम्मान, पूर्वजों से संबंध, नेतृत्व क्षमता
पूर्वाफाल्गुनीप्रेम, आनंद, विलासिता, कलात्मकता, रोमांस
उत्तराफाल्गुनीपरोपकार, नेतृत्व, नीतिपरायणता, स्थिरता, दयालुता
हस्तनिपुणता, बुद्धिमत्ता, कर्मशीलता, रचनात्मकता
चित्रासुंदरता, आकर्षण, शिल्प, ज्वलंत कल्पना, डिजाइन
स्वातिस्वतंत्रता, गतिशीलता, व्यापारिक बुद्धि, मिलनसार
विशाखामहत्वाकांक्षा, दृढ़ता, लक्ष्य प्राप्ति, जुनून
अनुराधामित्रता, सामंजस्य, कूटनीति, अनुशासन
ज्येष्ठाशक्ति, गोपनीयता, अधिकार, नेतृत्व, गूढ़ ज्ञान
मूलपरिवर्तन, ध्वंस, पुनर्जन्म, गूढ़ विद्या, रहस्य
पूर्वाषाढ़ाविजय, दृढ़ संकल्प, आत्म-सुधार, प्रेरणा
उत्तराषाढ़ानेतृत्व, अनुशासन, दीर्घकालिक सफलता, सच्चाई
श्रवणज्ञान, शिक्षा, विनम्रता, सुनने की क्षमता
धनिष्ठाधन, संगीत, साहस, समूह नेतृत्व, सैन्य शक्ति
शतभिषारहस्यवाद, चिकित्सा, शोध, आध्यात्मिकता
पूर्वाभाद्रपदगूढ़ ज्ञान, तपस्या, उच्च विचार, रहस्यमय प्रवृत्ति
उत्तराभाद्रपदआत्म-संयम, सहनशीलता, त्याग, आध्यात्मिक गहराई
रेवतीकलात्मकता, संवेदनशीलता, सौंदर्य, यात्रा, करुणा

ग्रहों और उनके मुख्य गुणों की सारणी

ग्रहप्रमुख गुण (Characteristics)सकारात्मक प्रभावनकारात्मक प्रभाव
सूर्यआत्मविश्वास, नेतृत्व, आत्मा की शक्ति, प्रसिद्धि, ऊर्जानेतृत्व क्षमता, प्रतिष्ठा, सम्मान, आत्म-निर्भरताअहंकार, क्रोध, हठ, अत्यधिक गर्व
चंद्रमा 🌙मन, भावनाएं, कल्पनाशक्ति, शांति, माता का कारकमानसिक शांति, करुणा, सृजनशीलता, सौम्यताचंचलता, अस्थिर मन, अत्यधिक भावुकता
मंगल 🔥साहस, ऊर्जा, दृढ़ता, प्रतिस्पर्धा, भाई का कारकपराक्रम, साहस, बल, नेतृत्वक्रोध, आक्रामकता, झगड़ालूपन, हिंसा
बुध 🟢बुद्धि, तर्क, गणित, संचार, व्यापार, चतुराईतर्कशीलता, बुद्धिमानी, हास्यबुद्धि, संवाद क्षमताचालाकी, धोखाधड़ी, अस्थिर निर्णय
गुरु (बृहस्पति) 📖ज्ञान, धर्म, गुरु, शिक्षा, नीति, विस्तारज्ञान, सदाचार, भक्ति, न्यायप्रियताअति आदर्शवाद, आलस्य, अत्यधिक आशावाद
शुक्र 💎प्रेम, सौंदर्य, कला, भोग-विलास, आकर्षणआकर्षण, समृद्धि, कला, सौंदर्य, प्रेमविलासिता, व्यभिचार, अति भोग, असंतोष
शनिकर्म, अनुशासन, न्याय, संघर्ष, धैर्यअनुशासन, मेहनत, धैर्य, दीर्घकालिक सफलतादेरी, कठिनाइयां, भय, संकीर्णता
राहु 🌀भौतिक इच्छाएं, भ्रम, छल, अचानक परिवर्तनचतुराई, वैश्विक दृष्टिकोण, वैज्ञानिक सोच, कूटनीतिछल-कपट, अति महत्त्वाकांक्षा, व्यसन, भ्रम
केतु 🔮मोक्ष, रहस्य, आध्यात्मिकता, त्याग, अंतर्ज्ञानआत्मज्ञान, आध्यात्मिकता, योग, रहस्यमय ज्ञानअकेलापन, भ्रम, त्याग की अति, अनिश्चितता

कैसे किया गया स्वामी ग्रहों का निर्धारण?

1. ग्रहों की ऊर्जा और उनका प्रभाव

हर ग्रह की अपनी एक ऊर्जा, प्रकृति और गुण होते हैं, जो नक्षत्रों के स्वामी बनने के पीछे मुख्य कारण हैं। यह निर्धारण ज्योतिषीय और आध्यात्मिक अध्ययन के आधार पर हुआ है।

🔹 केतु (गूढ़ ज्ञान, मोक्ष, रहस्य)
→ केतु को अश्विनी, मघा, मूल का स्वामी बनाया गया, क्योंकि ये नक्षत्र आध्यात्मिक जागरूकता, रहस्यमय शक्तियों और पुनर्जन्म से जुड़े हैं

🔹 शुक्र (सौंदर्य, भोग-विलास, आकर्षण)
→ भरणी, पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा नक्षत्रों को शुक्र का स्वामीत्व दिया गया क्योंकि ये नक्षत्र सौंदर्य, प्रेम, आकर्षण और सांसारिक सुख-सुविधाओं से जुड़े होते हैं।

🔹 सूर्य (अधिकार, आत्मा, नेतृत्व)
→ कृत्तिका, उत्तराफाल्गुनी और उत्तराषाढ़ा नक्षत्रों का स्वामी सूर्य है, क्योंकि ये नक्षत्र साहस, नेतृत्व, आत्म-शक्ति और सफलता को दर्शाते हैं।

🔹 चंद्रमा (भावनाएं, संवेदनशीलता, मन)
→ चंद्रमा को रोहिणी, हस्त और श्रवण का स्वामी बनाया गया, क्योंकि ये नक्षत्र कोमलता, सृजनशीलता, मानसिक संतुलन और भावनात्मक जुड़ाव का प्रतिनिधित्व करते हैं।

🔹 मंगल (शक्ति, पराक्रम, साहस)
→ मंगल को मृगशिरा, चित्रा और धनिष्ठा का स्वामी माना गया, क्योंकि ये नक्षत्र साहस, संघर्ष और दृढ़ निश्चय को दर्शाते हैं।

🔹 राहु (भ्रम, भौतिक इच्छाएं, अप्रत्याशित घटनाएं)
→ राहु को आर्द्रा, स्वाति और शतभिषा का स्वामी बनाया गया, क्योंकि ये नक्षत्र रहस्यमय शक्तियों, परिवर्तन और अप्रत्याशित घटनाओं से जुड़े हैं।

🔹 गुरु (ज्ञान, धर्म, शिक्षा, विस्तार)
→ पुनर्वसु, विशाखा और पूर्वाभाद्रपद नक्षत्रों का स्वामी गुरु है, क्योंकि ये ज्ञान, धर्म, गुरु-शिष्य परंपरा और आध्यात्मिकता को दर्शाते हैं।

🔹 शनि (कर्म, अनुशासन, विलंब, धैर्य)
→ शनि को पुष्य, अनुराधा और उत्तराभाद्रपद का स्वामी बनाया गया, क्योंकि ये नक्षत्र धैर्य, अनुशासन, तपस्या और कठिन परिश्रम से जुड़े हैं।

🔹 बुध (बुद्धि, तर्क, वाणी, व्यापार)
→ बुध को आश्लेषा, ज्येष्ठा और रेवती का स्वामी बनाया गया, क्योंकि ये नक्षत्र बुद्धि, व्यापार, चतुराई और संचार से जुड़े होते हैं।

2 . ऊर्जा और नक्षत्रों का गहराई से संबंध

केतु और राहु को छाया ग्रह होने के कारण चरम नक्षत्र दिए गए।
शनि को सबसे स्थिर और कर्म प्रधान नक्षत्र मिले।
सूर्य और चंद्रमा को राजसी और भावनात्मक नक्षत्र दिए गए।
गुरु को ज्ञान और धर्म प्रधान नक्षत्र मिले।

👉 इस तरह वैदिक ऋषियों ने गहरी गणनाओं और ऊर्जा संतुलन के आधार पर नक्षत्रों के स्वामी ग्रहों का निर्धारण किया।

वैदिक ज्योतिष में नक्षत्रों का महत्व और प्रयोग

वैदिक ज्योतिष में 27 नक्षत्रों का बहुत बड़ा महत्व है। प्रत्येक नक्षत्र की अपनी एक विशेष ऊर्जा होती है, जो व्यक्ति के जीवन, स्वभाव, घटनाओं और निर्णयों को प्रभावित करती है। ज्योतिषीय गणना, मुहूर्त निर्धारण, दशा प्रणाली, विवाह मिलान और विभिन्न उपायों में नक्षत्रों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।


1. नक्षत्रों का ज्योतिषीय महत्व

(A) जन्म नक्षत्र (Birth Star) और व्यक्ति का स्वभाव

🔹 व्यक्ति का जन्म जिस नक्षत्र में होता है, वह उसके स्वभाव, व्यक्तित्व और मानसिक प्रवृत्तियों को दर्शाता है।
🔹 जन्म नक्षत्र चंद्रमा की स्थिति के अनुसार तय किया जाता है।
🔹 प्रत्येक नक्षत्र किसी एक ग्रह के स्वामित्व में होता है, जो उस व्यक्ति के जीवन पर प्रभाव डालता है।

👉 उदाहरण:

  • यदि कोई व्यक्ति अश्विनी नक्षत्र में जन्मा है, तो वह ऊर्जावान, तेज और साहसी होगा, क्योंकि इसका स्वामी ग्रह केतु है।
  • रोहिणी नक्षत्र में जन्म लेने वाला व्यक्ति सुंदर, कलात्मक और भावुक होगा, क्योंकि इसका स्वामी ग्रह चंद्रमा है।

(B) दशा प्रणाली में नक्षत्रों का प्रभाव

🔹 वैदिक ज्योतिष में विंशोत्तरी दशा प्रणाली (120 साल की दशा चक्र) नक्षत्रों पर आधारित है।
🔹 किसी व्यक्ति की महादशा और अंतर्दशा का निर्धारण जन्म नक्षत्र के स्वामी ग्रह से किया जाता है
🔹 यह दशाएं जीवन की विभिन्न घटनाओं को प्रभावित करती हैं।

👉 उदाहरण:

  • यदि किसी व्यक्ति का जन्म मघा नक्षत्र (केतु स्वामी) में हुआ है, तो उसकी पहली महादशा केतु की होगी (7 साल), फिर शुक्र (20 साल), सूर्य (6 साल), आदि
  • इससे पता चलता है कि जीवन के अलग-अलग चरणों में कौन से ग्रह प्रभाव डालेंगे।

(C) मुहूर्त और शुभ कार्यों में नक्षत्रों का प्रयोग

🔹 वैदिक ज्योतिष में नक्षत्रों का उपयोग शुभ मुहूर्त (Auspicious Timing) निकालने के लिए किया जाता है।
🔹 विवाह, गृह प्रवेश, नामकरण संस्कार, यात्रा, नई नौकरी, बिजनेस की शुरुआत आदि के लिए शुभ नक्षत्रों का चयन किया जाता है।

👉 उदाहरण:

  • पुष्य नक्षत्र को सर्वश्रेष्ठ (सर्वसिद्धि) नक्षत्र माना जाता है और इसमें किए गए कार्य शुभ फल देते हैं।
  • मूल, आर्द्रा और ज्येष्ठा नक्षत्र को अशुभ नक्षत्र माना जाता है, इसलिए इनमें शुभ कार्य नहीं किए जाते।

(D) विवाह मिलान में नक्षत्रों का उपयोग

🔹 विवाह मिलान में अष्टकूट मिलान पद्धति में नक्षत्रों की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होती है
🔹 वर-वधू के नक्षत्रों को देखकर गुण मिलान किया जाता है, जिससे यह पता चलता है कि विवाह सफल होगा या नहीं।
🔹 विशेष रूप से नाड़ी दोष, ग्रह मैत्री, योनि मिलान, गण मिलान आदि के लिए नक्षत्रों का विश्लेषण किया जाता है।

👉 उदाहरण:

  • यदि लड़के का नक्षत्र स्वाति (राहु स्वामी) और लड़की का नक्षत्र पुनर्वसु (गुरु स्वामी) है, तो इनका स्वामी मित्र ग्रह हैं, जिससे वैवाहिक जीवन अच्छा रहेगा।
  • लेकिन यदि दोनों का नक्षत्र एक ही नाड़ी समूह में आता है, तो नाड़ी दोष हो सकता है, जिससे विवाह में बाधा आ सकती है।

2. विभिन्न ज्योतिषीय उपायों में नक्षत्रों का उपयोग

(A) मंत्र जाप और उपाय

🔹 किसी भी ग्रह या देवता से संबंधित मंत्र जाप, पूजा, हवन और उपायों का प्रभाव तब अधिक होता है, जब उन्हें उस ग्रह के अनुकूल नक्षत्र में किया जाए

👉 उदाहरण:

  • गुरु ग्रह (बृहस्पति) के लिए मंत्र जाप यदि पुनर्वसु, विशाखा या पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में किया जाए, तो यह अधिक प्रभावशाली होगा।
  • शनि ग्रह से जुड़े उपाय यदि पुष्य, अनुराधा या उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में किए जाएं, तो जल्दी फल देते हैं।

(B) रत्न धारण और नक्षत्रों का संबंध

🔹 किसी भी ग्रह से संबंधित रत्न पहनने के लिए नक्षत्रों का ध्यान रखना जरूरी होता है।

👉 उदाहरण:

  • नीलम (ब्लू सफायर) धारण करने के लिए पुष्य, अनुराधा या उत्तराभाद्रपद नक्षत्र उपयुक्त माने जाते हैं, क्योंकि ये शनि से संबंधित हैं।
  • माणिक्य (रूबी) धारण करने के लिए कृत्तिका, उत्तराफाल्गुनी या उत्तराषाढ़ा नक्षत्र का समय सबसे उत्तम होता है, क्योंकि ये सूर्य से संबंधित हैं।

3. विशेष नक्षत्र और उनके प्रभाव

(A) सर्वसिद्धि नक्षत्र (Most Auspicious Nakshatra)

🔹 ये नक्षत्र अत्यंत शुभ माने जाते हैं और किसी भी कार्य को करने के लिए सबसे अच्छे होते हैं।

  • पुष्य नक्षत्र – धन और उन्नति के लिए सर्वश्रेष्ठ
  • हस्त नक्षत्र – व्यापार और करियर के लिए उत्तम
  • श्रवण नक्षत्र – शिक्षा और ज्ञान से जुड़े कार्यों के लिए शुभ

(B) अशुभ नक्षत्र (Inauspicious Nakshatra)

🔹 ये नक्षत्र सामान्यत: अशुभ माने जाते हैं और इन नक्षत्रों में शुभ कार्य नहीं करने चाहिए।

  • मूल नक्षत्र – जीवन में बाधाएं और कष्ट
  • आर्द्रा नक्षत्र – संघर्ष और मानसिक तनाव
  • ज्येष्ठा नक्षत्र – सत्ता संघर्ष और अहंकार

🔮 निष्कर्ष:

वैदिक ज्योतिष में नक्षत्रों का उपयोग व्यक्ति के जीवन के हर क्षेत्र में किया जाता है, चाहे वह व्यक्तित्व विश्लेषण, भविष्यवाणी, विवाह मिलान, दशा प्रणाली, शुभ मुहूर्त, रत्न धारण, मंत्र जाप या उपाय हों।

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