पत्ते

 

धूप में जलते सूखते पत्ते,

सूखकर, टहनियों से टूटते पत्ते ।

टूटकर गिरते बिखरते पत्ते,

जीवन से फिर भी नहीं रूठते पत्ते ।।

 

गिरकर मेघों को तकते पत्ते,

वर्षा-जल में भीगते गलते पत्ते ।

गल-गलकर मिट्टी में मिलते पत्ते,

जीवन को कभी नहीं छलते पत्ते ||

 

मिट्टी-पानी से जब सनते पत्ते,

सन-सनकर खाद बनते पत्ते ।

गिरते बीजों को तब जनते पत्ते,

नव-पादप कि बुनियाद बनते पत्ते ।।

 

हरदम जीते, नहीं कभी मरते पत्ते,

बीज, टहनी, फलों में उतरते पत्ते ।

सृष्टि रचते, सृष्टा को भजते पत्ते,

स्वयं अमर सबको अमर करते पत्ते ।।

                              -विजय शुक्ल

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