एक जंगल में शेर सिंह नाम का शेर राजा था। उसका जनकल्याण मंत्री एक बंदर था, जिसका नाम बंदरू था। मंत्री बनने के बाद बंदरू घमंडी हो गया था। जब भी कोई अपनी समस्या लेकर उसके पास आता, वह समाधान के बदले में उससे कोई न कोई उपहार या फायदा मांगता। वह बड़ी चालाकी से दोनों पक्षों से लाभ उठाता था।
एक दिन कुत्ते और भेड़िये के बीच शिकार को लेकर झगड़ा हो गया। कुत्ता अपनी शिकायत लेकर मंत्री बंदरू के पास गया। उसने कहा, “मंत्री जी, यह भेड़िया मेरे इलाके में आकर शिकार करता है और जानवरों को मार डालता है। वह तो छोटे बच्चों तक को नहीं छोड़ता, जबकि जंगल के नियम के अनुसार केवल बूढ़े जानवरों का ही शिकार किया जाना चाहिए। इसकी वजह से मुझे खाने के लिए कुछ नहीं बचता।”
बंदरू ने ध्यान से सुना और मुस्कुराते हुए बोला, “मैं तुम्हारी समस्या का समाधान कर दूंगा, लेकिन तुम्हें मुझे एक तोहफा देना होगा।
“मंत्री जी, क्या तोहफा चाहिए आपको?” कुत्ते ने मजबूरी में पूछा।
बंदरू ने धीरे से कहा, “तुम्हें रोज एक किलो ताजा मांस मुझे देना होगा।”
कुत्ता, मजबूर होकर, इस समझौते के लिए तैयार हो गया।
उसी दिन बंदरू ने दो कौवे सिपाहियों को भेड़िये की गुफा में भेजा और उसे दरबार में हाज़िर होने का आदेश दिया। जब भेड़िया पहुँचा, तो बंदरू ने उसे धमकी भरे स्वर में कहा:
“भेड़िया, तुम्हारे खिलाफ शिकायत आई है। तुम कुत्ते के इलाके में घुसकर शिकार करते हो और छोटे जानवरों को मारते हो। यह जंगल के नियमों के खिलाफ है। अगर यह मामला राजा शेर सिंह तक पहुँचा, तो तुम्हें मौत की सज़ा मिल सकती है।”
भेड़िया डरकर बोला, “मंत्री जी, मेरी जान बचाने का कोई रास्ता बताइए। मैं क्या करूं?”
बंदरू की आंखों में लालच झलकने लगा। उसने कहा, “तुम्हारे पास एक ही रास्ता है। अगर तुम रोज मुझे एक किलो ताजा मांस दोगे, तो मैं यह मामला राजा तक नहीं ले जाऊंगा।”
भेड़िया, अपनी जान बचाने के लिए, यह समझौता करने पर मजबूर हो गया। उसने कहा, “मंत्री जी, मैं आपकी बात मानूंगा। आपको रोज एक किलो ताजा मांस मिलेगा। लेकिन मुझे छोटे जानवरों को भी मारने देना होगा।”
बंदरू बोला, “इसकी चिंता मत करो। तुम जो चाहो करो।”
कई दिनों तक बंदरू अपनी भ्रष्ट योजना का फायदा उठाता रहा। कुत्ता और भेड़िया दोनों ही रोज उसे ताजा मांस लाकर देते थे। लेकिन एक महीने बाद भी छोटे जानवरों का शिकार रुकने का नाम नहीं ले रहा था। कुत्ता फिर से मंत्री के पास गया और शिकायत की कि भेड़िया अभी भी छोटे जानवरों को मार रहा है।
बंदरू ने गुस्से से कहा, “क्या उसने तुम्हारा बच्चा मारा है? क्या तुम्हें बाकी जानवरों से अपना पेट भरने को नहीं मिल रहा?”
कुत्ते ने जवाब दिया, “मंत्री जी, ऐसा नहीं है। लेकिन जंगल के नियम किसी को मेरे इलाके में घुसने या छोटे जानवरों का शिकार करने की अनुमति नहीं देते।”
बंदरू हंसते हुए बोला, “अरे कुत्ते, नियमों को भूल जाओ। लेकिन यह मत भूलना कि तुम्हें रोज मुझे मांस देना है।”
बंदरू की इस हिम्मत ने भेड़िये को और भी निडर बना दिया। उसने दूसरे इलाकों में भी शिकार करना शुरू कर दिया। एक दिन वह राजा शेर सिंह के शिकार क्षेत्र में जा पहुँचा। उसने देखा कि एक छोटा भालू अन्य जानवरों के बच्चों के साथ खेल रहा है। वह चुपचाप वहां गया और भालू के बच्चे को बुलाया।
चूंकि जंगल के नियम के अनुसार कोई भी बच्चा जानवर नहीं मारा जा सकता था और यह राजा का इलाका था, इसलिए भालू का बच्चा निडर होकर भेड़िये के पास चला गया। लेकिन जैसे ही वह उसके पास पहुंचा, भेड़िये ने उस पर झपटकर एक ही वार में उसे मार डाला।
अन्य जानवरों के बच्चे यह देखकर भागते हुए सीधे राजा के महल पहुंचे। उन्होंने भालू के बच्चे के पिता, जो कि जंगल की सेना के कमांडर थे, को सारी बात बताई। कमांडर बहुत गुस्सा हुआ और उसने पूरी घटना राजा शेर सिंह को बताई।
राजा ने कमांडर को आदेश दिया कि वह भेड़िये को पकड़कर लाए और कहा, “मैं खुद उस गद्दार को मारकर खाऊंगा।”
जंगल की सेना ने बहुत खोजबीन के बाद भेड़िये को पकड़कर राजा के सामने पेश किया। राजा शेर सिंह ने गुस्से में दहाड़ते हुए पूछा, “तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई छोटे जानवरों को मारने और दूसरों के इलाकों में शिकार करने की?”
भेड़िया डरते हुए बोला, “महाराज, यह सब आपके मंत्री बंदरू ने मुझे करने दिया। उसने मुझसे रोज एक किलो मांस लिया और बदले में मुझे यह सब करने की अनुमति दी।”
इतने में कुत्ता भी दरबार में आ गया और उसने राजा को बताया कि बंदरू उससे भी रोज मांस लेता था और उसकी शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं की।
यह सुनकर राजा शेर सिंह बहुत नाराज़ हुआ और उसने सेना के कमांडर को आदेश दिया कि भेड़िये और बंदरू दोनों को तुरंत मार डाला जाए। दोनों को सज़ा दी गई और जंगल में एक नया मंत्री नियुक्त किया गया।
कहानी से सीख:
लालच और भ्रष्टाचार से भले ही थोड़े समय के लिए लाभ हो सकता है, लेकिन अंत में यह पतन का कारण बनता है। सच्चे नेता को ईमानदार और न्यायप्रिय होना चाहिए, जो बिना स्वार्थ के समाज की सेवा करे।