कुंभ में भगदड़

संवारने कल, कुछ सुधारने आज,
दूर-दूर से आए सब प्रयागराज ।
कुछ भक्तों पर फिर क्यों गिरी गाज,
क्यों दंड उनको जो करते प्रभु-काज।।

कहीं पुत्र बिछड़ा, कहीं पिता खोया,
कहीं हँसता जोड़ा, वियोग में रोया ।
क्या इतना मलिन पाप, जो न गया धोया,
क्यों टूटा सपना जो वर्षों से संजोया।।

होंगे लुढ़के कुछ,कोई गिरा होगा बिचारा,
भर-भर के आँसू, सबने तुम्हें होगा पुकारा।
भक्तों के सखा तुम, बनोगे निर्बल का सहारा,
कैसे मानूँ चली मर्जी तुम्हारी, तुमने उनको मारा ।

तुम तो हो दयानिधि, ममता के सागर,
क्यों गिरे नहीं अश्रु तुम्हारे हे करुणाकर !
शायद प्रसन्न तुम उन्हें जल्दी बुलाकर,
पर बता दो कैसे जियें अपनों को गँवाकर ।।

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