कुंभ में भगदड़

संवारने कल, कुछ सुधारने आज,दूर-दूर से आए सब प्रयागराज ।कुछ भक्तों पर फिर क्यों गिरी गाज,क्यों दंड उनको जो करते प्रभु-काज।। कहीं पुत्र बिछड़ा, कहीं पिता खोया,कहीं हँसता जोड़ा, वियोग में रोया ।क्या इतना मलिन पाप, जो न गया धोया,क्यों टूटा सपना जो वर्षों से संजोया।। होंगे लुढ़के कुछ,कोई गिरा होगा बिचारा,भर-भर के आँसू, सबने … Read more



कुछ

कविता सुनने के लिए क्लिक करें सोचता हूँ मैं कुछ, कुछ कहता हूँ,कहकर कुछ, मैं कुछ करता हूँ ।कुछ करते करते, कुछ उलझता हूँ,कहे कोई कुछ, कुछ नहीं समझता हूँ।। कुछ करते करते, क्या कुछ कर पाऊँगा,पता नहीं कुछ, कब कुछ डर जाऊँगा।डर कर कुछ, कुछ-कुछ डगमगाऊँगा,हो गा क्या कुछ, कुछ और डगर जाऊँगा।। कुछ … Read more



हम गदहा

हम गदहा*** मिलै तुम्हरे लगे आवा ,हम गदहा ।आपन रोवा आपन गावा,हम गदहा ।। का कै लेहौ तुम, ना जाना,हम गदहा ।सच्चा माना सच बखाना,हम गदहा ।। अपनै ढपली, अपनै गाना,हम गदहा ।जल्दी तुमका ना पहिचाना,हम गदहा ।। खाय के गयिन तुम्हरै दाना ,हम गदहा।तुम कह्यो जौन तौनै माना,हम गदहा ।। बतायी रस्ता पर कदम … Read more



भाग्य-उद्धारक

अंग्रेजी में पढ़ें   एक नदी बहुत दिनों से खोई थी, कुछ पत्थरों, कंकड़ों पर सोई थी । फल की आशा भी नहीं कोई थी, क्योंकि याद नहीं बीज क्या बोई थी ॥   तभी सूरज ने धरा को और तपाया, जल-श्रोत सुखाए, बूंद-बूंद को तड़पाया । सूर्य-रश्मियों ने पवन को भड़काया, जल-जल कर पेड़ों … Read more



The Fate-Healer

हिन्दी में पढ़ें A river lay lost for many a day,Sleeping on pebbles, stones, and clay.No dreams of fruits, no seeds to sow?For she had forgotten what to grow. Then the sun blazed down with might,Scorching the earth with burning light.Streams dried up, each drop in pain,And trees stood parched, yearning for rain. The sea’s … Read more



Blindfolded Eyes

हिन्दी में पढ़ें I covered my eyes with a cloth so black,And stepped outside, with no thought to track.I wondered aloud, “Why is it still night?Where is the sun? Where’s the day’s bright?”   The world seemed strange, so quiet, yet loud,I heard whispers, like ghosts in a crowd.Frightened and lost, I walked slowly,The city … Read more



आँखों पर पट्टी

Read in English   आँखों पर पट्टी खुद से बांध डाला, फ़िर निकला घर से सब भूला-भाला। मैं चकित, क्यों है सब काला-काला, कहाँ रह गया सूरज? कहाँ है उजाला?   गर है अभी रात, तो ये शोरगुल कैसा? कौन है जो चीखा, चिल्ला रहा भूतों जैसा। खो गया उन गलियों में और डरा मैं … Read more



असली

  रोज़ रोज़ की हबड़-तबड़ में, सब कुछ पाने की भगदड़ में । हरदम खोया-खोया लगता हूँ, खुदगर्जी के नशे में सोया लगता हूँ ।।   कभी इनके, कभी उनके बहकावे में, झूठी शान और फर्जी दिखावे में । रहता मशगूल, खूब काम करता हूँ, ऐसे ही जिंदगी अपनी तमाम करता हूँ ।।   कभी … Read more



पत्ते

पत्ते
***
धूप में जलते सूखते पत्ते,
सूखकर, टहनियों से टूटते पत्ते ।
टूटकर गिरते बिखरते पत्ते,
जीवन से फिर भी नहीं रूठते पत्ते ।।

गिरकर मेघों को तकते पत्ते,
वर्षा-जल में भीगते गलते पत्ते ।
गल-गलकर मिट्टी में मिलते पत्ते,
जीवन को कभी नहीं छलते पत्ते ||

मिट्टी-पानी से जब सनते पत्ते,
सन-सनकर खाद बनते पत्ते ।
गिरते बीजों को तब जनते पत्ते,
नव-पादप कि बुनियाद बनते पत्ते ।।

हरदम जीते, नहीं कभी मरते पत्ते,
बीज, टहनी, फलों में उतरते पत्ते ।
सृष्टि रचते, सृष्टा को भजते पत्ते,
स्वयं अमर सबको अमर करते पत्ते ।।
-विजय शुक्ल

 

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