कुछ

कविता सुनने के लिए क्लिक करें सोचता हूँ मैं कुछ, कुछ कहता हूँ,कहकर कुछ, मैं कुछ करता हूँ ।कुछ करते करते, कुछ उलझता हूँ,कहे कोई कुछ, कुछ नहीं समझता हूँ।। कुछ करते करते, क्या कुछ कर पाऊँगा,पता नहीं कुछ, कब कुछ डर जाऊँगा।डर कर कुछ, कुछ-कुछ डगमगाऊँगा,हो गा क्या कुछ, कुछ और डगर जाऊँगा।। कुछ … Read more

असली

  रोज़ रोज़ की हबड़-तबड़ में, सब कुछ पाने की भगदड़ में । हरदम खोया-खोया लगता हूँ, खुदगर्जी के नशे में सोया लगता हूँ ।।   कभी इनके, कभी उनके बहकावे में, झूठी शान और फर्जी दिखावे में । रहता मशगूल, खूब काम करता हूँ, ऐसे ही जिंदगी अपनी तमाम करता हूँ ।।   कभी … Read more

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